Wednesday, April 30, 2014

दीदार-ए-हकीक़त


तुमसे मिला,तुझे जाना , तुझे चाह भी बहोत
पर ख़ुशी के मायने सिर्फ यही तो नहीं होते


हम एकदूसरे से मिलने से पहले भी बहुत रोये
ये क्यूँ कहते हो की तुम न होते तो हम न रोते



जिंदगी सब कुछ खोती ही आ रही है अब तक 
ये मत कहो की तुम न होते तो कुछ न खोते


नींद मेरी पहले भी कोसों दूर थी आँखों से दोस्त
तुम ये क्यूँ कहते हो की तुम न होते तो हम सोते 



जो ये होता इल्म के इश्क आज भी हराम है मेरे दोस्त
तो हम दिल की बंजर जमीन पे इश्क का बीज न बोते

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Tuesday, April 29, 2014

तुम्हारे अहसास ने मुझे सूफी कर दिया ...

तुमसे पहले न थी आज सुबह की राह कोई
बस थी तो उस खामोश रात की आह कोई

तुझे सामने देख मैं तो मानो निशब्द हो गया
तुझे आगोश में लेना मेरा हसीं प्रारब्ध हो गया

अलग हो के लगा के जा रही है जान मेरी
तेरी हंसी की आवाज बन गयी अजान मेरी

ज़िन्दगी को ज़िंदा किया तू एक ऐसी आदत है
इश्क कहूँ या कहूँ आरज़ू तू अब मेरी इबादत है

जामिन इश्क की बन के आई अलसुबह तू जाहिर
बस क्या कहूँ कैसा लगा के देख लिया कोई साहिर

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*जामिन - भरोसा दिलाने वाला
*जाहिर - प्रत्यक्ष
*साहिर - जादू




Monday, April 28, 2014

मैं कुछ बैठ यहाँ पे लिखता हूँ आवाज तू उसकी वहां सुने ....!!

अरज
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जिस तरह तेरी मेरी मुलाकात बीत जाए
तेरे बिना आई ये खामोश  रात बीत जाए

फिर चाहे कुछ और बीते या न बीते माही
मेरी तन्हाई तेरी तन्हाई के साथ बीत जाए !!

आभास
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थी अगर मुमकिन कहानी बिन तेरे मेरे जहाँ
फिर कौनसे किरदार का पैगाम तू लाइ यहाँ

है कहाँ वश में हमारी रूह का किरदार देख 
जिंदगानी मोड़ कर लाइ हमें देखो कहाँ !!

जिन्दादिली
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दफ़न होने को थे जो अरमान दिलों में थे पले
लौटी फिर वो ताल जो कदम हमारे साथ चले

निरस हो चुके जीवन में ये देख कहीं हैं फूल खिले
चल चल चलें ,उस राह पे जिस राह पे मंजिल मिले !!

हकीक़त
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इस अजब जगत की गजब रीत ये खुद ही सब कुछ बुनता है 
कहनी -सुननी तो सबकी यूँ ,राही खुद अपनी राहें चुनता है

मत सोच अंत क्या होगा इसका जिसकी हुई शुरुआत नई

एक गहरे जिन्दा इंसा की बात ये पागल सुनता है  ...!!

शब्दों से आत्मा का क्रंदन (The Awakening)

जाने कितने दिन हुए ठीक से मैं सोया भी नहीं
पता नहीं क्या है जो मुझे हर रात जगाये रखता है ?

तुम न थी जीवन में तब भी नींद कोसों दूर थी मुझसे
तुम हो तो भी कुछ है ख़ास जो मुझे जगाये रखता है

क्या था मेरे दिल का हाल, जब तुम नहीं थी मेरे पास
जाने ऐसा क्या हुआ मेरे साथ,जो जगाये रखता है ?

ऐसी क्या पीड़ा की कोई नशा भी सुला न पाया गोया
गहरा है शायद वो राज जो मुझे जगाये रखता है

मुझे लोग पागल ही कहने लगे थे, हाँ पागल ही तो
क्या पागलपन का ये अहसास मुझे जगाये रखता है ?

दिल को किसी से लगाने की तमन्ना ही तो थी बस
तमन्ना पालना क्या गुनाह है जो मुझे जगाये रखता है

इसमें मेरा क्या दोष की जो हम मिल गए अचानक से
मिल गए तो बिछडन का अहसास मुझे जगाये रखता है

मेरी छोड़ मैं तुम्हारी सोचता हूँ के क्या होगा तेरे मन में
तेरे मन के करीब होने का आभास मुझे जगाये रखता है

दिल तो करता  है रो दूँ और सो जाऊं तेरी गोद में ए आरज़ू
पर तेरी आँखों का ये अजब सा उजास मुझे जगाये रखता है  



Thursday, April 24, 2014

हाल-ए-दिल (एक ख़याल,एक सवाल )

आज सुबह जब आँख खुली मेरी
वो ही रात का ख़याल दिल में पाया

जिस उम्मीद में रात को सोया था
उसे सुबह ५ बजे ही पूरा हुआ पाया

इसके मायने तलाशता मैं उठा
बालकनी में जाकर खड़ा हुआ

मोगरे पे नया फूल खिला था
कल का फूल वहीँ था पड़ा हुआ

मैंने उसे देखा और वो मुस्कुराया
मेरे दोस्त पैगाम ये तू ये कैसा लाया

अजब बेचैनी सी हुई दिल में फिर से
सही है या गलत समझ नहीं आया ?