Monday, April 22, 2013

जीवन चलने का नाम ..!!


पिछले कई दिनों से
 अजीब पसोपेश में मन उलझा हुआ है , के आखिर इस दुनिया में अच्छाई किसे कहते हैं ,वो कौन से काम है जिनको करने पे कोई आपका विरोध नहीं कर सकता .? क्या सच है क्या झूठ ..? जब तब मैं ये सवाल आसपास के लोगो के सामने उठाता रहता हूँ ..लेकिन कोई भी दूसरा जवाब पहले वाले से मिलता नहीं है .हर इंसान के मन में सवाल तो उठते ही होंगे न ..तो क्या उन्हें जवाब मिल जाते हैं ..? अगर नहीं मिलते तो क्या सब आत्माएं अतृप्त ही रहती है .?
देश में रोज छोटी बड़ी घटनाएँ होती रहती है , सुन देख के मन विचलित हो उठता है की क्यूँ ऐसा हो रहा है ? लेकिन कोई माकूल जवाब नहीं मिलता ..पता नहीं कब तक मन ऐसे ही अतृप्त रहेगा ..!!हर नयी घटना पहले वाली को छोटा बना देती है ..!!
गरीब की लाचारी अच्छी नहीं लगती , अमीर का दंभ अच्छा नहीं लगता .. जब बात पैसा कमाने की आती है तो सवाल आता है की क्यूँ और किसके लिए कमाएँ ...परिवार का पेट तो जानवर भी पाल लेता है ..दूसरों के लिए कमाएँ तो अपनों की नजर में मुर्ख हो जाऊंगा .. मन करता है साधारण बना रहूँ रहता भी हूँ लेकिन आस पास असाधारण लोगो की भीड़ है जो जीना मुहल कर देती है ...!! जब देखता हूँ लोग जाती धर्मं के नाम पे  लड़ झगड रहे हैं तो गुस्सा आता है साथ में तरस भी की लोग कितने अज्ञान है ..लेकिन पंडित दोस्त इसे नकारता है तो  उससे झगडा करने का मूड नहीं होता .. फिर कहता हूँ ठीक है भाई ...हिंदू महान है .. लेकिन सवाल ये है की हिंदू है कौन.. सहिष्णुता का पाठ पढाने वाले असहिष्णु हो कर मार काट करें तो हिंदू कैसे ?

गाँवों से इतना लगाब है की शहर के नाम से भी नफरत है .. ढोंग और दिखावे के खोखले आवरण में लिपटे लोग पता नहीं किस इच्छा को पूरा करने के लिए इस इंसानी ढेर में कचरे की थैली की तरह इधर उधर पड़े रहते हैं ...? लेकिन ये बात सिधान्त्वादी सिद्ध करने में एक पल भी नहीं लगते मेरे गाँव के वो लोग जो शहरो की झूठी चमक से उस पतंगे की तरह प्रभावित है जिसे पता नहीं है की वो दूर जलने वाले शमाँ में रौशनी तो है लेकिन उस रौशनी के पीछे मौत छिपी है .. छद्म आवरण लिए ...!! जब से गांधी को पढ़ा है मन क्रांतिकारी हो गया है लेकिन गांधी का नाम लेते  ही ...गालियाँ सुनता हूँ ...इसलिए पढ़ा समझा लेकिन कहता बहुत कम हूँ ...!!

मन करता है जीवन को रोक दूँ ,और चला  जाऊं कहीं दूर वादियों में ..जंगल में ..पहाड़ों पे ..अकेला बिना किसी साधन सामग्री के ...बहुत खतरे हैं पर उनसे अनजान तो नहीं हूँ ..कम से कम मुझे पता तो होगा की जिस राह पे जा रहा हूँ वाहन खतरा है .. और क्या खतरा है .. अगर कोई जानवर खा गया तो कम से कम शारीर किसी के काम तो आया ... निष्काम भाव से आई मौत भी सुकून देगी ..!!हर तरफ स्वार्थ सिद्दी में लगे लोग मन को भाते नहीं है ..जी घबराता है ..इनसे .. मन विचलित रहता है ... दुखी रहता है ...चल रहा हूँ क्यूँ के जीवन चलने का नाम है ...चलते रहे,चलते रहिये ...!!

Saturday, April 13, 2013

मनो का अंतर्द्वंद ..!!

भगवान ने शरिर एक ही दिया है ,पर शायद मन दो दिए हैं ,जो आपस में उलझते रहते हैं -

बाहरी मन --
 माना अभी तक कुछ किया नहीं,माना कुछ कर के दिखाया नहीं, कोई पुरष्कार नहीं जीता ,कोई प्रतियोगिता में भाग नहीं लिया,किसी मंच से बोला नहीं..लेकिन यार फिर भी मैं कुछ हूँ !!
मैं कुछ हूँ क्यूँ के मैं हर उस बात को गहराई से समझता हूँ ,सुनता हूँ,पढता हूँ जिसपे दुनिया वाह वाह कह उठती है ..जिसका सब गुणगान करते हैं ... मुझे भी समझ है उन् मुद्दो की जिनपे बतियाने वालो को बुद्धिजीवी कहा  जाता है ..तो क्या हुआ मेरी प्रतिक्रिया थोड़ी देर से आती है तो क्या हुआ जो मेरे जैसी प्रतिक्रिया पहले कोई दे चूका होता है ..कहा तो मैंने भी है न कुछ ..??

कितने लोग है ऐसे जो मेरे जैसी समझ रखते हैं ,तो क्या हुआ उनकी संख्या ज्यादा है भीड़ का हिस्सा तो नहीं हूँ न .. कम से कम किसी समूह में तो आता हूँ ..और देखना एक दिन ये समूह छोटे से छोटा होता जायेगा और मैं एक दिन चुनिन्दा लोगो में गिना जाऊंगा ..

भीतरी मन ---
 हा हा हा (अट्ठाहस )नहीं ये तो कामना हुई ..मेरी कोई कामना नहीं है .क्यूँ करूँ कामना जब मुझे पता है ये किसी की पूरी नहीं होती ..किसी और को पता हो न हो मुझे पता होना चाहिए मैं क्या हूँ ..क्या रखा है दिखावे में सब तो क्षणभंगुर है ..एक दिन सब छूट जाना है फिर किस बात की कामना ...कोई समझे न समझे तू समझ की तू क्या है ..बैठ शांति से कहीं पे दुनिया को भूल के और तलास खुद को ..जिस दिन खुद को तलाश लेगा तू जानेगा की तू किसी समूह का हिस्सा नहीं है बल्कि तू अपने आप में अद्वितीय है .. हमेशा से ..!!

दो मनो में चलने वाला ये द्वन्द पुराना है पर बरक़रार है पता नहीं कब ये बंद होगा ..किसे जितना चाहिए और कौन जीतेगा ?