Monday, December 23, 2013

आप की, आप के द्वारा, आप से उम्मीद .....

आज वो हुआ जिसका मैंने  कभी सपना भी नहीं देखा था,और न कभी सुना था .  विरासत में मिली देश की स्थापित राजनैतिक आम समझ कभी इस ओर गई ही नहीं के ऐसा कुछ  सोच पाते. मझे याद है करीब २ साल पहले जब मैं ट्विटर पे नया नया आया था और इस विद्या को सीखने और समझने की कोशिश में लगा था ठीक उसी समय अन्ना आन्दोलन शरू होने को था...देश की २५-३५  साल उम्र वाली पीढ़ी एक ऐसे अजब माहोल को देखने वाली थी जो उन्होंने पहले कभी नहीं देखा था .देश की सामजिक -राजनैतिक व्यवस्था से दुखी आम जनता इससे दुखी होकर भी उसमे इस तरह से सम्मिलित थी की ऊपर से देखने से ऐसा लगता मानो इसका कोई तोड़ नहीं है और ये हज़ारो सालो से ऐसे ही चलती आई है और चलेगी ..किसी पंडित से पूछो तो वो इसे कलियुग कहता घोर कलियुग. अन्ना से पहले कभी किसी के मुह से ऐसा नहीं सुना की ये बदल सकता है ...चारो तरफ नकारात्मकता दिखाई देती थी और जिसका भी आभास भी नहीं था मुझे तो कम से कम .. एक वाक्य में कहूँ तो सत्ता निरंकुश थी और प्रजा उदासीन ....!

फिर अचानक वो हुआ जो फिल्मी सा लगता ..पहली बार किसी इंसान को सीधे संसद से भिड़ते देखा ,पहली बार कोई सत्य के लिए जिद पे अड़ गया ..और अचानक से न जाने कहाँ से उसके इर्द गिर्द ऐसे लोगों का जमावड़ा लगने लगा जो अन्ना के समान ही जिद्दी थे ,सत्य के साथ रह के दबंग नजरिया रखने वाले ..बुलंद आवाज के साथ सरकार को ललकारने वाले ...देखते ही देखते देश की राजधानी में हजारों लाखों लोग इकट्ठे हो गए एक जगह एक मकसद के लिए ..और मकसद ऐसा जिसका मैंने इससे पहले कभी ज़िक्र तक नहीं सुना पर हाँ जरूरत महसूस होती थी ऐसी किसी व्यवस्था की जो किसी को बक्शे नहीं ..जिसके पास शक्ति हो ..सामर्थ्य हो निरंकुश सत्ता से लड़ने का ".. आन्दोलन अपने चरम पे पहुँचने वाला था तभी कुछ ऐसा हुआ की मन अचानक से यथार्थ में लौट आया... जिस दिन अन्ना ने संसद के वादे के बाद अनशन तोडा उसकी पहली  रात ठीक ऐसा महसूस हो रहां था जैसा सचिन तेंदुलकर ९९ पे खेल रहे हो और अचानक आउट हो जाने पे होता है ..आन्दोलन ख़त्म ,चर्चा ख़त्म और सब सामान्य ..

आन्दोलन के बाद मेरा मन व्यथित रहने लगा मैं अपनी व्यथा को ट्विटर के माध्यम से बांटने लगा और धीरे धीरे मझे महसूस हुआ की देश में मेरे जैसे लाखो करोडो है ..इस दौरान मुझे कुछ ऐसे लोग मिले जिनका सानिध्य पाकर मैंने देश,समाज,राजनीती,व्यवस्था जैसे शब्दों को नए सिरे से जाना और यकीन मानिए ये मेरी पढ़ी स्कूली किताबों से बिलकुल उल्टा था ..यानी जो कुछ भी मैं जानता था सब एक तरफ़ा लिखा हुआ लेख था ..पहले जहाँ सरकार का  मतलब मेरे लिए चुनी हुई सरकार और विपक्ष  से था अब इसकी परिभाषा सरल और  व्यापक हो गई अब सरकार का मतलब ग्राम सभा हो गया .. ऐसे ही अपने ज्ञानकोष को बढाते हए मेरे शब्दकोष में कुछ नए शब्द जुड़े स्वराज,विकेंद्रीकरण,सत्याग्रह,ग्रामसभा,भागीदारी,लोकपाल,अधिकार,जे.पी आन्दोलन,सूचना का अधिकार,आदि आदि ...इन सबके बारे में जानने के बाद अचानक पता चला वो जो अना के साथी थे उनमे से कुछ लोग राजनैतिक पार्टी बना रहे हैं ,जिनका नेतृत्व अरविन्द केजरीवाल ने लिया है ,अरविन्द कौन ? वो ही अरविन्द जिसने अन्ना का साथ दिया और जिसने अपनी सरकारी नोकरी छोड़ के समाज सेवा का जिम्मा ठाया है ..सुना है बहत इमानदार है बन्दा...एक किताब लिखी है स्वराज नाम से उसका कहना है की देश की व्यवस्था ऐसी होनी चाहिए जैसी किताब में लिखी है ..जब मैंने उस किताब को पढ़ा तो अनायास ही मैं सहमत हो गया की हाँ बात तो सही है व्यवस्था तो ऐसी ही होनी चाहिए ///इसके पहले गांधी जी के मार्ग को पढ़ा था और बहुत पहले से ये धारना मन में थी की विकाश का ये नेहरु मॉडल देश को विनाश की और ले जा रहा है ..जब की गांधी का मोडल ज्यादा बेहतर था ..पर वो था क्या इसका पता नहीं था जब स्वराज को पढ़ा तो फिर हिन्द स्वराज को भी पढ़ डाला ..और ये समझ बनी के हालाँकि हिन्द स्वराज पूर्ण  राम राज की व्यवस्था है पर आज के परिपेक्ष में स्वराज ज्यादा सटीक और संभव सा प्रतीत होता है ..जब के स्वराज निकली उसी हिंद्स्वराज से है..फिर भी ...

पिछले साल जब आम आदमी पार्टी बनी तो मन किया दिल्ली वाली सभा में जाऊं ताकि एक राजनैतिक पार्टी का FOUNDER MEMBER  बन सकूँ लेकिन फिर  स्वराज की याद आई तो लगा की क्या फर्क पड़ता है स्वराज का मकसद तो देना है पाना है ही नहीं ...खैर,पार्टी बनने के बाद जो घटनाक्रम चला और तमाम तरह की अटकलें लगाने लगी की ये फलां फलां की बी टीम है ये न वो ...उन सबसे मन आशंकित रहता की जाने क्या होगा ,भूतकाल में जो कुछ देखा था उसे देख के लगता था की ४-५ सीट जीत के संघर्ष करते रहेंगे ..और ये व्यवस्था १५-२० साल ऐसे ही रहेगी कम से कम ..पर जैसे जैसे दिन महीने बीतते गए माहोल गर्माता गया और चुनावी महीने के आते आते चर्चा होने लगी की आम आदमी पार्टी को ३५ सीटें आएँगी फॉर ४५ हो गई ..हालांकि ये खुद आप का मंथन था .पर जब सारे परिपेक्ष को देखता तो लगता हाँ यार मीडिया की आम आदमी पार्टी को ले के उदासीनता के बावजूद भी आप इतनी चर्चा में है ..और कांग्रेस की आलोचना करने के बाद कुछ ऐसा बचता ही नहीं की से बड़ा कर के दिखाया जाये ..यानी देश की दूसरी सबसे बड़ी पार्टी भाजपा देश की राजधानी के चुनावी परिपेक्ष में कहीं टिकती नजर नहीं आ रही ...एक तरफ आप है दसरी तरफ कांग्रेस ...तब मीडिया ने आप को दिखाना शुरू किया और मेरा भी होंसला बढ़ने लगा और अब मैं ये मानने लगा की १५-२० सीट तो आएगी ... फिर योगेन्द्र यादव जैसे विनम्र लोगो के मुंह से सुनके और भी भरोसा होने लगता ..बहरहाल

दिल्ली में चुनाव हुआ और आशा के अनुरूप नतीजे आये पर कांग्रेस और भाजपा में इतना भारी अंतर समझ के बाहर लगा...कांग्रेस इतनी कमजोर और भाजपा शसक्त कैसे हुई... सीटों का आंकड़ा ऐसा बैठा के किसी को कुछ समझ नहीं आ रहा था की अब होगा क्या ..भाजपा कोंग्रेस विरोधी हैं कोंग्रेस ,भाजपा और आप विरोधी है ,आप दोनों का विरोध करती आई है अब सरकार कौन बनाये जैसे ही आम आदमी पार्टी ने अपने चरित्र के अनुरूप विपक्ष में बैठने का ऐलान किया भाजपा घिर गई और सबसे बड़ी पार्टी होने के बावजूद विपक्ष में बैठने के लिए लालायित दिखने लगी और बस यहीं से शुरू हुआ आलोचना ,परिलोचना का दौर..घोर अनैतिक दल और नेता भी अरविन्द केजरीवाल और उसकी पार्टी से नैतिकता के सवाल करने लगे ...दुबारा चुनाव नहीं होने चाहिए ,क्यूँ क्यूँ के इससे जनता पे अनावश्यक बोझ पड़ेगा ,तो क्या करें ?आप सरकार बनाओ . आप सरकार बनाये पर बड़ी पार्टी तो भाजपा है ? है पर उसके पास बहुमत नहीं है ,तो आप के पास कहाँ है ,कांग्रेस दे रही है न समर्थन . कांग्रेस आप को समर्थन देगी पर क्यूँ ? और आप को ये जोड़तोड़ की राजनीति करनी ही नहीं ..तो फिर हम ये मानेंगे की आप और अरविन्द ज़िम्मेदारी से दर गए ..वादे पुरे  कर नहीं सकते इसलिए भाग रहे हैं ....अच्छा ये बात है तो फिर हमें जनता से पूछने दो ..की आप की सरकार बनायें या नहीं ..? ये तो ढोंग है आपको सत्ता चाहिए थी मिल गई ..अरे हद है... जनता ने फैसला दिया की सरकार बने ..जैसे ही फैसला आया भाजपा ने कहना शुरू  कर दिया की ये तो हमें पहले ही पता था की आप कांग्रेस की बी टीम है ..सब पहले से पर्व निर्धारित था ..भाजपा को सत्ता से बाहर रखने की चाल थी ये ..कमाल है ...उलझा के रखने में ये लोग माहिर है ...खैर अब जब सरकार बनाने का दावा ठोंक दिया आप ने तो अब क्या होगा क्या सरकार चलेगी ? या अविश्वास मत आने से गिर जाएगी ...पता नहीं . पर इतना पता है की एक बार जो सरकार बन गई तो ६ महीने तो गिरेगी नहीं कम से कम लोकसभा चनाव तक ...और अगर ६ महीने रह गई तो कुछ ऐसे आमूल चूल परिवर्तन आएंगे की देश की राजनीती की हवा ही बदल जाएगी ...फिर सरकार गिर भी जाए आप विपक्ष में भी आ जाये तो भी किसी पार्टी के लिए सरकार बनाना और चलाना आसान नहीं होगा ...कम से कम गढ़बंधन की सरकार तो ...स्थापित निरंकुश सत्ता लोलप राजनीती के ऊपर आप का अंकुश लग चूका है ..अब देश में नैतिकता मापने का पैमाना तैयार हो गया है ..या कहूँ हो रहा है ...जब सरकार के सारे मंत्री और विधायक पैदल या बसों में बिना सिक्यूरिटी के आयेंगे तो कैसे कोई दूसरी पार्टी का नेता महँगी गाडी में ४-६ पोलिस वालों से घिर के आ सकता है ..जनता तो देखेगी न जी ....हाँ के ना ...

आज मनीष सिसोदिया का ये बयान उन साड़ी संभावनाओं को खारिज कर रहा है जो कहती है की आप ने उसूलों से समझोता किया है ,आप कांग्रेस को समर्थन देगी लोकसभा में आदि आदि ...
ना हमने किसी से समर्थन लिया है ना दिया है ये अल्पमत की सरकार है जिसे जब लगे सरकार गिरा दे हम जनता के लिये काम करते रहेंगे : Manish Sisodia







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