Tuesday, September 10, 2013

अमीर मनाई

ये कुछ शेर आज ऐसे मिले जो दिल के पास है ..इन्हें सहेज के रख रहा हूँ....!!
जुदा है दुखतर-ए-राज का नाम हर सोहबत में ऐ साकी
परी है मयकशों में, हूर है परहेज़गारों में
कौन सी जा है जहाँ जलवा-ए-माशूक नहीं
शौक-ए-दीदार अगर है तो नज़र पैदा कर 


उस की हसरत है जिसे दिल से मिटा भी न सकूँ
ढूँढने उस को चला हूँ जिसे पा भी न सकूँ

[ हसरत=इच्छा/Desire ]

मेहरबां होके बुलालो मुझे चाहो जिस वक्त
मैं गया वक़्त नहीं हूँ के आ भी न सकूँ

डाल कर ख़ाक मेरे खून पे क़ातिल ने कहा
कुछ ये मेहंदी नहीं मेरी के मिटा भी न सकूँ

ज़ब्त कमबख्त ने और आ के गला घोंटा है
के उसे हाल सुनाऊँ तो सुना भी न सकूँ

[ज़ब्त=सहनशीलता/Forbearance]

ज़हर मिलता ही नहीं मुझको सितमगर वरना
क्या कसम है तेरे मिलने की के खा भी न सकूँ

उस के पहलू में जो लेजा के सुला दूँ दिल को
नींद ऎसी उसे आए के जगा भी न सकूँ

[पहलू=गोद/Lap ]

नक्श-ऐ-पा देख तो लूँ लाख करूँगा सजदे
सर मेरा अर्श नहीं है कि झुका भी न सकूँ

बेवफा लिखते हैं वो अपनी कलम से मुझ को
ये वो किस्मत का लिखा है जो मिटा भी न सकूँ

इस तरह सोये हैं सर रख के मेरे जानों पर
अपनी सोई हुई किस्मत को जगा भी न सकूँ