(“मैं जब बहुत छोटा था तब से मैं मेरे इस सपने को देख रहा हूँ ..) ..अक्सर मैं जब भी इस तरह की बात किसी के मुह से सुनता हूँ तो मुझे एक खालीपन का अहसास होता है और ये एकमात्र अहसास है जो मुझे होता है वाकई में बाकी अहसासों का तो जैसे मैं नाटक सा करता हूँ..कोई हंसा तो हंस दिया ,कोई रोया तो रो दिया ..माहोल गंभीर है तो गंभीर हो गया और खुशनुमा है तो खुश दिखा दिया ..पर ये जो खालीपन है ये मुझे महसूस होता है..हमेशा ..!
खालीपन इस बात का के मुझे ऐसा कुछ याद नहीं आता और जब मैं सोचने बैठता हूँ की क्यूँ नहीं आता तो दिमाक स्थिर हो जाता है एक चीज़ पे आके टिक जाता है या कहूँ शून्य में चला जाता है उस शून्य में जिसे नशे की लत ने मेरे जीवन में बनाया है, एक बड़ा सा शून्य जिसके पार देखने की क्षमता मेरे दिल और दिमाक में नहीं सी प्रतित होती है.मैं जब अपने अतीत को याद करता हूँ तो दूर दूर तक नशे में डूबा एक शख्स दिखाई देता है जिसे वर्तमान का भान नहीं,भूत उसे याद नहीं,भविष्य की कोई चिंता नहीं,बड़ी अजीब सी शख्शियत है सच में बड़ी अजीब...!
ये जो शख्स है उसने ना जाने कितने हँसने और रोने के लम्हे यूँ ही शून्य में तकते हुए गुजार दिए जिंदगी के ११ साल,अनमोल जीवन के अनमोल ११ साल अखंड नशे में गुजारने के बाद कोई आदमी सामान्य आदमी नहीं रह जाता ,सामजिक,आर्थिक,न्यायिक,आध्यात्मिक हर दृष्टिकोण से उसका जीवन असामान्य रहता है.इसी असामान्य स्थिति में जब कभी अतीत में पलट के देखता हूँ तो कुछ नहीं मिलता मन निराश हो उठता है की क्यूँ मैंने ओरों की तरह नहीं जिया अपने जीवन को ..खेलकूद,पढ़ाई लिखाई ,मस्तिमजाक ,घूमना फिरना,कोई लक्ष्य बनाके चलना ,कोई शौख रखना,राजनीतक-सांस्कृतिक या कोई रचनात्मक कार्य ..कुछ भी तो नहीं किया मैंने ..मैं बस जिए जा रहा हूँ उसी शून्य में और जीवन उस प्राकृतिक दृश्य की तश्वीर की मानिंद हो गया है जिसको बनाने वाला उसे बनाये जा रहा है पर रंग नहीं भर रहा सफ़ेद पन्ने और काली पेन्सिल के निशाँ के अलावा दूसरा कोई रंग नहीं दिखता मुझे मेरी पिछली जिंदगी के कैनवास पर ..!!
और अब तो हालत ये है की नशे में मैं हूँ की मुझपे नशा है ये भेद करना खुद मेरे लिए मुश्किल है इतना शातिर हो गया हूँ मैं की मेरी इच्छा नहो तो किसी को भनक तक ना लगे की मैं अपने होश में नहीं हूँ.पर आखिर कब तक चलेगा ऐसा ?कब तक मैं यूँ ही शून्य में ताकते हुए जीवन काटता जाऊंगा और फिर अतीत को खाली बनाये रखूँगा ? कोई नहीं जानता सिवा मेरे,पर मैं ये भी जानता हूँ की जब भी मैं नशे से बाहर आने की कोसिस करता हूँ ये दुनियावी बातें और यहाँ का माहोल मुझे बेचैन कर देता है और फिर मैं लौट जाता हूँ अपनि दुनिया में उस दुनिया में जहाँ कोई भाव नहीं,खुशी नहीं गम नहीं ..हंसना ,रोना जीवन के हसीं सपने कुछ नहीं है वहाँ, अगर कुछ है तो एक स्थिर और सफ़ेद जिन्दगी जिसपे वक्त के हाथों रोज प्रतिक्षण बनती जा रही है एक बेरंग तश्वीर...!!